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कार्तिक माह में तुलसी सेवा - admin - 11-09-2020

कार्तिक माह में तुलसी सेवा
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☀ जय जय श्री राधे  ☀

⚜ कार्तिक माह में तुलसी सेवा ⚜

"तुलसी हमारी आस्था एवं श्रद्धा की प्रतीक हैं..!!"
वर्ष भर तुलसी में जल अर्पित करना एवं सायंकाल तुलसी के नीचे दीप जलाना अत्यंत ही श्रेष्ठ माना जाता है।

"कार्तिक मास में तुलसी जी के समीप दीपक जलाने से मनुष्य अनंत पुण्य का भागी बनता है..
इस मास में तुलसी के समीप दीपक जलाने से व्यक्ति को साक्षात लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि तुलसी में साक्षात लक्ष्मी का निवास माना गया है।

पौराणिक कथा के अनुसार'..
गुणवती नामक स्त्री ने कार्तिक मास में मंदिर के द्वार पर तुलसी की एक सुन्दर सी वाटिका लगाई उस पुण्य के कारण वह अगले जन्म में सत्यभामा बनी और सदैव कार्तिक मास का व्रत करने के कारण वह भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी बनी।
'यह है कार्तिक मास में तुलसी आराधना का फल।'

इस मास में तुलसी विवाह की भी परंपरा है, जो कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है।
इसमें तुलसी के पौधे को सजाया संवारा जाता है एवं भगवान शालिग्राम जी का पूजन किया जाता है और तुलसी जी का विधिवत विवाह किया जाता है। जो व्यक्ति यह चाहता है कि उसके घर में सदैव शुभ कर्म हो, सदैव सुख, शान्ति का निवास रहे.. उसे तुलसी की आराधना अवश्य करनी चाहिए।

कहते हैं कि जिस घर में शुभ कर्म होते हैं, वहां तुलसी हरी-भरी रहती हैं
एवं जहां अशुभ कर्म होते हैं, वहां तुलसी कभी भी हरी-भरी नहीं रहतीं।                                                                 

राधा रानी जी की तुलसी सेवा प्रसंग ?

एक बार राधा जी सखी से बोली: सखी ! तुम श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए किसी देवता की ऐसी पूजा बताओ, जो परम सौभाग्यवर्द्धक हो..!!

तब समस्त सखियों में श्रेष्ठ चन्द्रनना ने अपने हदय में एक क्षण तक कुछ विचार किया। फिर चंद्रनना ने कहा- राधे ! परम सौभाग्यदायक और श्रीकृष्ण की भी प्राप्ति के लिए 'वरदायक व्रत है' “तुलसीजी की सेवा” और तुलसी सेवन का ही नियम लेना चाहिये..!!

क्योकि तुलसी का यदि स्पर्श अथवा ध्यान, नाम, संकीर्तन, आरोपण, सेचन, किया जाये तो महान पुण्यप्रद होता है। हे राधे ! जो प्रतिदिन तुलसी की नौ प्रकार से भक्ति करते है, वे कोटि सहस्त्र युगों तक अपने उस सुकृत्य का उत्तम फल भोगते है..!!

मनुष्यों की लगायी हुई तुलसी जब तक शाखा, प्रशाखा, बीज, पुष्प, और सुन्दर दलों, के साथ पृथ्वी पर बढ़ती रहती है तब तक उनके वंश मै जो-जो जन्म लेता है, वे सभी हो हजार कल्पों तक श्रीहरि के धाम में निवास करते है, जो तुलसी मंजरी सिर पर रखकर प्राण त्याग करता है, वह सैकड़ो पापों से युक्त क्यों न हो.. यमराज उनकी ओर देख भी नहीं सकते..!!

इस प्रकार चन्द्रनना की कही बात सुनकर रासेश्वरी श्री राधा ने साक्षात्
श्री हरि को संतुष्ट करने वाले तुलसी सेवन का व्रत आरंभ किया।                                                               

श्री राधा रानी जी ने तुलसी सेवा व्रत करते हुए केतकी वन में सौ हाथ गोलाकार भूमि पर बहुत ऊँचा और अत्यंत मनोहर श्री तुलसी का मंदिर बनवाया, जिसकी दीवार सोने से जड़ी थी और किनारे-किनारे पद्मरागमणि लगी थी, वह सुन्दर-सुन्दर पन्ने हीरे और मोतियों के परकोटे से अत्यंत सुशोभित था, और उसके चारो ओर परिक्रमा के लिए गली बनायीं गई थी जिसकी भूमि चिंतामणि से मण्डित थी..!!

ऐसे तुलसी मंदिर के मध्य भाग में हरे पल्लवो से सुशोभित तुलसी की स्थापना करके श्री राधा रानी ने अभिजित मुहूर्त में उनकी सेवा प्रारम्भ की..!!

श्री राधा जी ने आश्र्विन शुक्ला पूर्णिमा से लेकर चैत्र पूर्णिमा तक तुलसी सेवन व्रत का अनुष्ठान किया, व्रत आरंभ करने उन्होंने प्रतिमास पृथक-पृथक रस से तुलसी को सींचा..!!

“कार्तिक में दूध से”, “मार्गशीर्ष में ईख के रस से”, “पौष में द्राक्षा रस से”,
“माघ में बारहमासी आम के रस से”, “फाल्गुन मास में अनेक वस्तुओ से मिश्रित मिश्री के रस से” और “चैत्र मास में पंचामृत से” उनका सेवन किया और वैशाख कृष्ण प्रतिपदा के दिन उद्यापन का उत्सव किया..!!

उन्होंने दो लाख ब्राह्मणों को छप्पन भोगो से तृप्त करके वस्त्र और आभूषणों के साथ दक्षिणा दी। मोटे-मोटे दिव्य मोतियों का एक लाख भार और सुवर्ण का एक कोटि भार श्री गर्गाचार्य को दिया..!!

उस समय आकाश से देवता तुलसी मंदिर पर फूलो की वर्षा करने लगे,
उसी समय सुवर्ण सिंहासन पर विराजमान हरिप्रिया तुलसी देवी प्रकट हुई। उनके चार भुजाएँ थी कमल दल के समान विशाल नेत्र थे सोलह वर्ष की अवस्था और श्याम कांति थी..!!

मस्तक पर हेममय किरीट प्रकाशित था और कानो में कंचनमय कुंडल झलमला रहे थे, गरुड़ से उतरकर तुलसी देवी ने रंग वल्ली जैसी श्री राधा जी को अपनी भुजाओ से अंक में भर लिया और उनके मुखचन्द्र का चुम्बन किया..!!

जय श्रीराधे कृष्ण ?

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☀ तुलसी पूजन के पौराणिक मंत्र पौराणिक ग्रंथों में तुलसी का बहुत महत्व माना गया है। जहां तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है, वहीं तुलसी पूजन करना मोक्षदायक माना गया है। हिन्दू धर्म में देव पूजा और श्राद्ध कर्म में तुलसी आवश्यक मानी गई है।
तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है।

? तुलसी जी के स्तुति मन्त्र ?

☀ तुलसी के पत्ते तोड़ते समय बोलने के मंत्र

ॐ सुभद्राय नमः…ॐ सुप्रभाय नमः

मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
      नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।

☀ तुलसी को जल देने का मंत्र

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
      आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।

☀ तुलसी स्तुति का मंत्र

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
      नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

☀ तुलसी पूजन के बाद बोलने का तुलसी मंत्र

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
      धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
      लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
      तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

☀ तुलसी नामाष्टक मंत्र

वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
      पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
      एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
      य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
     
☀ सुबह स्नान के बाद घर के आंगन या देवालय में लगे तुलसी के पौधे की गंध, फूल, लाल वस्त्र अर्पित कर पूजा करें। फल का भोग लगाएं। धूप व दीप जलाकर उसके नजदीक बैठकर तुलसी की ही माला से तुलसी गायत्री मंत्र का श्रद्धा से सुख की कामना से कम से कम 108 बार स्मरण अंत में तुलसी की पूजा करें

ॐ श्री तुलस्यै विद्महे।
      विष्णु प्रियायै धीमहि।
      तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।।

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                  ॐ नमो भगवते वासुदेवाय               
       
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  सुप्रभातम