Govind Acharya
03-05-2019, 12:42 PM
महाशिवरात्रि का महापर्व
बहुत से हिन्दुओं को कहते हम सभी ने सुना है की सालों से पूजा पाठ कर रहा हूँ लेकिन अभी तक कुछ मिला नहीं , कोई फायदा नहीं हुआ ...........
हिन्दू पूजा पाठ तो करते हैं लेकिन ...बस करते हैं ...न उसके कारण की समझ न उसके तरीके की न नियम न को कानून बस हम पूजा पाठ करते हैं .....और फल नहीं मिल रहा?
*?इसका मुख्य कारण है धर्म ज्ञान का अभाव ... साधना आरधना , धर्म शास्त्रों के पठन पठान का अभाव और ईस्वरीय आराधना में स्वार्थ का समावेश*
*एक छोटासा उदाहरण देखिये सायद कुछ समझ आ जाए???*
?शिव पुराण में कहीं भी यह वर्णन नहीं आया कि भगवान शिव ने गांजा या चीलम व चरस फुकी हो
?किसी भी वेद पुराण में इसका वर्णन नही मिलता
?भगवान शिव के कुल 108 नाम है कोई भी एक नाम का जुड़ाव इन चीजों से नही है ,
?विपरीत इसके महादेव जी ने संसार की रक्षा के लिए हलाहल विष पिया था , लेकिन इसके बारे में कोई बात तक भी नहीं करता (विष पीने से डॉ जो लगता है )
?80 % गंजेडी - चरसी जब गांजा चरस फुकते है तो वे यही कहते हैं कि फिर क्या हुआ यह तो भोले का प्रसाद है । इन जैसे लोगों ने ना तो कभी भगवान शिव को जाना होता है ना कभी पढ़ा और ना कभी जानने की कोशिश करते हैं परंतु कश लगाते समय इनको शिव जी की याद आ जाती है ।
?ऐसे लोग फ़र्ज़ी फूहड़ भोजपुरी और हरियाणवी भक्ति गाने सुन प्रभावित होते है जिन गानों में शिव जी की भांग और गाजा पीते दिखाया जाता है जो कि बहुत ही शर्मनाक है। ऐसे लोग नकल करने से पहले शिव जी बारे पूरा ज्ञान क्यों नही लेते ऐसी भक्ति के नाम पर वे हम हिन्दुओ की बदनामी करवा रहे।
?ऐसे लोगों को मैं कहना चाहूंगा कि ज़रा सोचो जो शिव ब्रह्मांड के पिता है ब्रह्मांड के रचियता व ब्रह्मांड की आत्मा है , जो कण कण में समाए हुए है , जिसका त्रिनेत्र खुलते ही भयंकर प्रलय आ जाए । जो आदियोगी है महातपस्वी व मार्शल आर्ट के जनक है क्या ऐसे शिव को किसी भी तरह के नशे की क्या जरूरत है ? ?
?वे भगवान है ना कि हम जैसे तुच्छ मानव । उनको किसी सहारे की जरूरत नहीं है , अपने आप में ही संपूर्ण हैं शिव।
हां उन्हें भांग के पत्ते अवश्य चढ़ते हैं क्योंकि आयुर्वेद में भांग को एक बहुत ही उपयोगी औषधि माना जाता है और आज इसे पूरा विश्व भी स्वीकार कर रहा है ।
?शिव पुराण के अनुसार समुद्र मंथन सावन के महीने में हुआ था तो जब मंथन में से अमृत निकला था तो उस अमृत को पाने के लिए तो देवता दैत्यों में भगदड़ मच गई थी परंतु ठीक जब अमृत के बाद पृथ्वी को नष्ट कर देने वाला हलाहल विष निकला तो कोई आगे ना आया , तब भगवान शिव आए और उन्होंने उस भयानक विष को अपने कंठ में धारण किया , जिसके कारण वे नीलकंठ व देवों के देव महादेव कहलाए ।
?भगवान शिव के सहस्त्र नाम में एक नाम है कर्पूरगौरम , जिसका अर्थ है पूर्णतः सफेद । लेकिन उस हलाहल विष के सेवन के बाद उनका शरीर नीला पड़ना शुरू हो गया था , भगवान शिव का शरीर तपने लगा लेकिन शिव फिर भी पूर्णतः शांत थे लेकिन देवताओं ने सेवा भावना से भगवान शिव की तपण शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया और विष के प्रभाव कम करने के लिए विजया ( भांग का पौधा ) को दूध में मिला कर भगवान शिव को औषधि रूप में पिलाया । बस यही एक प्रमाण है भगवान शिव के भांग सेवन का , और हमने उन्हें चरस गांजा फुकने वाला एक साधारण सा इंसान बना दिया , अब आप ही बताइए कि क्या हम सही न्याय कर रहे हैं उस ब्रह्मांड पिता की छवि के साथ ? ?
हम शिव जी के पूजा करते है तो हमने अपने आराध्य से उनकी दी गयी शिक्षा से सीख ले कर तपस्वी, योगी और पवित्र बनाना है और सनातन धर्म की रक्षा करनी है समय समय पर होने वाली मिलावटों को रोकना है
*?महाशिवरात्रि पर शिवलिंग और जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करे साथ ही अपने मन और आत्मा का भी अभिषेक तप संयम और ज्ञान से करे शिव जी की तरह*
*अपने आराध्यों पर चुटुकुला न बनाये न शेयर करे यह सभी एक निवेदन है?*
*?हमारी कमी यह है कि जब हमारे सामने कुछ गलत हो रहा हो हम उसे बर्दास्त कर जाते है अगर हम उसी समय उन गलत चीजो का उपचार न करे तो वही आगे फैल और समस्या खड़ी कर सकती है*
एक जागरूक सच्चा सनातनी व शिव भक्त होने के नाते। यह मैसेज औरो को भी शेयर कीजियेगा
हर हर महादेव
बहुत से हिन्दुओं को कहते हम सभी ने सुना है की सालों से पूजा पाठ कर रहा हूँ लेकिन अभी तक कुछ मिला नहीं , कोई फायदा नहीं हुआ ...........
हिन्दू पूजा पाठ तो करते हैं लेकिन ...बस करते हैं ...न उसके कारण की समझ न उसके तरीके की न नियम न को कानून बस हम पूजा पाठ करते हैं .....और फल नहीं मिल रहा?
*?इसका मुख्य कारण है धर्म ज्ञान का अभाव ... साधना आरधना , धर्म शास्त्रों के पठन पठान का अभाव और ईस्वरीय आराधना में स्वार्थ का समावेश*
*एक छोटासा उदाहरण देखिये सायद कुछ समझ आ जाए???*
?शिव पुराण में कहीं भी यह वर्णन नहीं आया कि भगवान शिव ने गांजा या चीलम व चरस फुकी हो
?किसी भी वेद पुराण में इसका वर्णन नही मिलता
?भगवान शिव के कुल 108 नाम है कोई भी एक नाम का जुड़ाव इन चीजों से नही है ,
?विपरीत इसके महादेव जी ने संसार की रक्षा के लिए हलाहल विष पिया था , लेकिन इसके बारे में कोई बात तक भी नहीं करता (विष पीने से डॉ जो लगता है )
?80 % गंजेडी - चरसी जब गांजा चरस फुकते है तो वे यही कहते हैं कि फिर क्या हुआ यह तो भोले का प्रसाद है । इन जैसे लोगों ने ना तो कभी भगवान शिव को जाना होता है ना कभी पढ़ा और ना कभी जानने की कोशिश करते हैं परंतु कश लगाते समय इनको शिव जी की याद आ जाती है ।
?ऐसे लोग फ़र्ज़ी फूहड़ भोजपुरी और हरियाणवी भक्ति गाने सुन प्रभावित होते है जिन गानों में शिव जी की भांग और गाजा पीते दिखाया जाता है जो कि बहुत ही शर्मनाक है। ऐसे लोग नकल करने से पहले शिव जी बारे पूरा ज्ञान क्यों नही लेते ऐसी भक्ति के नाम पर वे हम हिन्दुओ की बदनामी करवा रहे।
?ऐसे लोगों को मैं कहना चाहूंगा कि ज़रा सोचो जो शिव ब्रह्मांड के पिता है ब्रह्मांड के रचियता व ब्रह्मांड की आत्मा है , जो कण कण में समाए हुए है , जिसका त्रिनेत्र खुलते ही भयंकर प्रलय आ जाए । जो आदियोगी है महातपस्वी व मार्शल आर्ट के जनक है क्या ऐसे शिव को किसी भी तरह के नशे की क्या जरूरत है ? ?
?वे भगवान है ना कि हम जैसे तुच्छ मानव । उनको किसी सहारे की जरूरत नहीं है , अपने आप में ही संपूर्ण हैं शिव।
हां उन्हें भांग के पत्ते अवश्य चढ़ते हैं क्योंकि आयुर्वेद में भांग को एक बहुत ही उपयोगी औषधि माना जाता है और आज इसे पूरा विश्व भी स्वीकार कर रहा है ।
?शिव पुराण के अनुसार समुद्र मंथन सावन के महीने में हुआ था तो जब मंथन में से अमृत निकला था तो उस अमृत को पाने के लिए तो देवता दैत्यों में भगदड़ मच गई थी परंतु ठीक जब अमृत के बाद पृथ्वी को नष्ट कर देने वाला हलाहल विष निकला तो कोई आगे ना आया , तब भगवान शिव आए और उन्होंने उस भयानक विष को अपने कंठ में धारण किया , जिसके कारण वे नीलकंठ व देवों के देव महादेव कहलाए ।
?भगवान शिव के सहस्त्र नाम में एक नाम है कर्पूरगौरम , जिसका अर्थ है पूर्णतः सफेद । लेकिन उस हलाहल विष के सेवन के बाद उनका शरीर नीला पड़ना शुरू हो गया था , भगवान शिव का शरीर तपने लगा लेकिन शिव फिर भी पूर्णतः शांत थे लेकिन देवताओं ने सेवा भावना से भगवान शिव की तपण शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया और विष के प्रभाव कम करने के लिए विजया ( भांग का पौधा ) को दूध में मिला कर भगवान शिव को औषधि रूप में पिलाया । बस यही एक प्रमाण है भगवान शिव के भांग सेवन का , और हमने उन्हें चरस गांजा फुकने वाला एक साधारण सा इंसान बना दिया , अब आप ही बताइए कि क्या हम सही न्याय कर रहे हैं उस ब्रह्मांड पिता की छवि के साथ ? ?
हम शिव जी के पूजा करते है तो हमने अपने आराध्य से उनकी दी गयी शिक्षा से सीख ले कर तपस्वी, योगी और पवित्र बनाना है और सनातन धर्म की रक्षा करनी है समय समय पर होने वाली मिलावटों को रोकना है
*?महाशिवरात्रि पर शिवलिंग और जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करे साथ ही अपने मन और आत्मा का भी अभिषेक तप संयम और ज्ञान से करे शिव जी की तरह*
*अपने आराध्यों पर चुटुकुला न बनाये न शेयर करे यह सभी एक निवेदन है?*
*?हमारी कमी यह है कि जब हमारे सामने कुछ गलत हो रहा हो हम उसे बर्दास्त कर जाते है अगर हम उसी समय उन गलत चीजो का उपचार न करे तो वही आगे फैल और समस्या खड़ी कर सकती है*
एक जागरूक सच्चा सनातनी व शिव भक्त होने के नाते। यह मैसेज औरो को भी शेयर कीजियेगा
हर हर महादेव