iroffwerymoma
11-07-2020, 07:11 PM
बातचीत की कला:
एक बार एक राजा अपने सहचरों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया था
वहाँ शिकार के चक्कर में एक दूसरे से बिछड गये और एक दूसरे को खोजते हुये राजा एक नेत्रहीन संत की कुटिया में पहुँच कर अपने विछडे हुये साथियों के बारे में पूंछा !!
नेत्र हीन संत ने कहा महाराज सबसे पहले आपके सिपाही गये हैं, बाद में आपके मंत्री गये, अब आप स्वयं पधारे हैं
इसी रास्ते से आप आगे जायें तो मुलाकात हो जायगी
संत के बताये हुये रास्ते में राजा ने घोडा दौड़ाया और जल्दी ही अपने सहयोगियों से जा मिला और नेत्रहीन संत के कथनानुसार ही एक दूसरे से आगे पीछे पहुंचे थे
यह बात राजा के दिमाग में घर कर गयी कि नेत्रहीन संत को कैसे पता चला कि कौन किस ओहदे वाला जा रहा है
लौटते समय राजा अपने अनुचरों को साथ लेकर संत की कुटिया में पहुंच कर संत से प्रश्न किया कि आप नेत्र विहीन होते हुये कैसे जान गये कि कौन जा रहा है कौन आ रहा है ?
राजा की बात सुन कर नेत्रहीन संत ने कहा महाराज आदमी की हैसियत का ज्ञान नेत्रों से नहीं उसकी बातचीत से होती है
सबसे पहले जब आपके सिपाही मेरे पास से गुजरे तब उन्होने मुझसे पूछा कि ऐ अंधे इधर से किसी के जाते हुये की आहट सुनाई दी क्या ? तो मैं समझ गया कि
यह संस्कार विहीन व्यक्ति छोटी पदवी वाले सिपाही ही होंगे ॥
जब आपके मंत्री जी आये तब उन्होंने पूछा बाबा जी इधर से किसी को जाते हुये..... तो मैं समझ गया कि यह किसी उच्च ओहदे वाला है
क्योंकि बिना संस्कारित व्यक्ति किसी बडे पद पर आसीन नहीं होता
इसलिये मैंने आपसे कहा कि सिपाहियों के पीछे मंत्री जी गये हैं
जब आप स्वयं आये तो
आपने कहा सूरदास जी महाराज आपको इधर से निकल कर जाने वालों की आहट तो नहीं मिली मैं समझ गया कि आप राजा ही हो सकते हैं
क्योंकि आपकी वाणी में आदर सूचक शब्दों का समावेश था और दूसरे का आदर वही कर सकता है जिसे दूसरों से आदर प्राप्त होता है।
क्योंकि जिसे कभी कोई चीज नहीं मिलती तो वह उस वस्तु के गुणों को कैसे जान सकता है
दूसरी बात यह संसार एक वृक्ष स्वरूप है जैसे वृक्ष में डालियाँ तो बहुत होती हैं पर जिस डाली में ज्यादा फल लगते हैं वही झुकती है
जय जय श्री राम
एक बार एक राजा अपने सहचरों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया था
वहाँ शिकार के चक्कर में एक दूसरे से बिछड गये और एक दूसरे को खोजते हुये राजा एक नेत्रहीन संत की कुटिया में पहुँच कर अपने विछडे हुये साथियों के बारे में पूंछा !!
नेत्र हीन संत ने कहा महाराज सबसे पहले आपके सिपाही गये हैं, बाद में आपके मंत्री गये, अब आप स्वयं पधारे हैं
इसी रास्ते से आप आगे जायें तो मुलाकात हो जायगी
संत के बताये हुये रास्ते में राजा ने घोडा दौड़ाया और जल्दी ही अपने सहयोगियों से जा मिला और नेत्रहीन संत के कथनानुसार ही एक दूसरे से आगे पीछे पहुंचे थे
यह बात राजा के दिमाग में घर कर गयी कि नेत्रहीन संत को कैसे पता चला कि कौन किस ओहदे वाला जा रहा है
लौटते समय राजा अपने अनुचरों को साथ लेकर संत की कुटिया में पहुंच कर संत से प्रश्न किया कि आप नेत्र विहीन होते हुये कैसे जान गये कि कौन जा रहा है कौन आ रहा है ?
राजा की बात सुन कर नेत्रहीन संत ने कहा महाराज आदमी की हैसियत का ज्ञान नेत्रों से नहीं उसकी बातचीत से होती है
सबसे पहले जब आपके सिपाही मेरे पास से गुजरे तब उन्होने मुझसे पूछा कि ऐ अंधे इधर से किसी के जाते हुये की आहट सुनाई दी क्या ? तो मैं समझ गया कि
यह संस्कार विहीन व्यक्ति छोटी पदवी वाले सिपाही ही होंगे ॥
जब आपके मंत्री जी आये तब उन्होंने पूछा बाबा जी इधर से किसी को जाते हुये..... तो मैं समझ गया कि यह किसी उच्च ओहदे वाला है
क्योंकि बिना संस्कारित व्यक्ति किसी बडे पद पर आसीन नहीं होता
इसलिये मैंने आपसे कहा कि सिपाहियों के पीछे मंत्री जी गये हैं
जब आप स्वयं आये तो
आपने कहा सूरदास जी महाराज आपको इधर से निकल कर जाने वालों की आहट तो नहीं मिली मैं समझ गया कि आप राजा ही हो सकते हैं
क्योंकि आपकी वाणी में आदर सूचक शब्दों का समावेश था और दूसरे का आदर वही कर सकता है जिसे दूसरों से आदर प्राप्त होता है।
क्योंकि जिसे कभी कोई चीज नहीं मिलती तो वह उस वस्तु के गुणों को कैसे जान सकता है
दूसरी बात यह संसार एक वृक्ष स्वरूप है जैसे वृक्ष में डालियाँ तो बहुत होती हैं पर जिस डाली में ज्यादा फल लगते हैं वही झुकती है
जय जय श्री राम