Reiki and Astrology Predictions

Full Version: महर्षि दयानंद जी ने हरिद्वार कुम्भ मेले
You're currently viewing a stripped down version of our content. View the full version with proper formatting.

Sourav Gupta

महर्षि दयानंद जी ने हरिद्वार कुम्भ मेले पर पाखंड खण्डनी पताका गाडी थी और कथित साधुसंतों से पूछा था -गंगा वा संगम में स्नान करने से पाप धुलते हैं वा मुक्ति होती है तो मेंढक मछलियों मगरमच्छों की मुक्ति क्यों नहीं हो जाती ?*
....................................
*मैं एक ही बार कुंभ गया हूं। सिर्फ देखने गया था कि किस-किस तरह की मूढ़ताएं वहां चलती हैं। उनमें सबसे बड़ी मूढ़ता नागा साधु हैं। और जो मैंने उनके चेहरे पर देखा, उसमें साधुता तो है ही नहीं; साधुता का नाममात्र नहीं है। जो हाव-भाव गुंडों के चेहरों पर होते हैं, वही हाव-भाव इन नागा साधुओं के चेहरों पर होते हैं। जरा भी भेद नहीं है। वही दुष्टता, वही दंभ, वही उपद्रव की वृत्ति। हर कुंभ के मेले में जो उपद्रव होते हैं, झगड़े होते हैं, खून-खराबे होते हैं, वे नागा साधुओं की वजह से हो जाते हैं। मगर दमन ऐसी चीज है कि इसके ये परिणाम होने वाले हैं-  दुनिया में कोई और देश होता, तो इन नागा साधुओं को पकड़ कर पागलखाने में रख दिया जाता। इनका इलाज किया जाता। इनको बिजली के शॉक दिए जाते। ये होश में नहीं हैं। ये क्या कर रहे हैं! ये विक्षिप्त हैं। मगर यहां ये महात्मा हैं! यहां पागल परमहंस समझे जाते हैं! यहां विक्षिप्त मुक्त समझे जाते हैं! और भीड़ तो वहां सबसे ज्यादा होगी, क्योंकि ऐसा मौका क्यों चूकना! नग्न आदमी को देखने की आकांक्षा तो बड़ी प्रबल है। और फिर इस तरह के बेहूदे प्रदर्शन... तुम्हारा प्रश्न ठीक है कि इस तरह के बेहूदे प्रदर्शनों को देखने लिए भीड़ इकट्ठी होती है और इसका कोई विरोध नहीं है। विरोध क्यों होगा? यह सदियों पुरानी परंपरा है। यह परंपरावादी देश है। यह रूढ़िवादी देश है। यहां कोई भी मूर्खता पुरानी होनी चाहिए, बस फिर ठीक है। जितनी पुरानी हो उतनी ज्यादा ठीक है-ओशो*